
ठाणे, महाराष्ट्र | 10 जुलाई | ज़ोरदार हेडलाइंस ब्यूरो
महाराष्ट्र के ठाणे जिले से सामने आई एक शर्मनाक और स्तब्ध कर देने वाली घटना ने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया है। यहां एक प्राइवेट स्कूल में कक्षा 5वीं से 10वीं तक की छात्राओं को कथित तौर पर मासिक धर्म की जांच के नाम पर अपमानित किया गया। आरोप है कि छात्राओं से जबरन कपड़े उतरवाकर उनकी निजता का हनन किया गया।
घटना के बाद अभिभावकों ने स्कूल के बाहर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया और प्रिंसिपल को गिरफ्तार करने की मांग की। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए स्कूल की प्रिंसिपल को हिरासत में लिया है और जांच शुरू कर दी है।
📍 क्या है पूरा मामला?
घटना ठाणे जिले के शहापुर इलाके स्थित एक नामचीन निजी स्कूल की है। जानकारी के मुताबिक, स्कूल के टॉयलेट में खून के धब्बे पाए जाने के बाद स्कूल प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कक्षा 5वीं से 10वीं तक की सभी छात्राओं को कन्वेंशन हॉल में इकट्ठा किया। वहां प्रोजेक्टर पर टॉयलेट की तस्वीरें दिखाई गईं और छात्राओं से पूछा गया कि किसे इस समय पीरियड्स हो रहे हैं।
जिन छात्राओं ने ‘हां’ में जवाब दिया, उनके फिंगरप्रिंट लिए गए, जबकि जिन्होंने ‘नहीं’ कहा, उन्हें बारी-बारी से टॉयलेट ले जाकर कपड़े उतरवाकर जांच की गई। यह प्रक्रिया बिना किसी महिला चिकित्सक, पैरेंट्स या काउंसलर की मौजूदगी के की गई, जिससे छात्राओं में भारी मानसिक तनाव और अपमान की भावना उत्पन्न हुई।
👨👩👧 अभिभावकों का गुस्सा फूटा
बच्चियों ने जब यह घटना घर जाकर अपने माता-पिता को बताई तो अभिभावक अगले दिन स्कूल के बाहर जमा हो गए और जोरदार विरोध-प्रदर्शन किया। अभिभावकों ने स्कूल प्रशासन पर संवेदनहीनता का आरोप लगाते हुए प्रिंसिपल की गिरफ्तारी की मांग की।
इस दौरान स्कूल के वकील अभय पितळे जब मामले को संभालने स्कूल पहुंचे, तो गुस्साए परिजनों ने उन्हें घेर लिया और मारपीट करने की कोशिश की। हालांकि मौके पर मौजूद पुलिस ने स्थिति को काबू में लिया और वकील को सुरक्षित बाहर निकाला।
👮♀️ पुलिस ने की त्वरित कार्रवाई
शिकायत के आधार पर पुलिस ने प्रिंसिपल को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। शहापुर पुलिस स्टेशन के अधिकारी ने बताया कि इस तरह की कार्रवाई कानूनन मानवाधिकारों का उल्लंघन है और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
पुलिस अब यह जांच कर रही है कि क्या इस पूरे कृत्य की जानकारी स्कूल प्रबंधन के अन्य सदस्यों को भी थी और क्या इस तरह की जांच पहले भी की गई है।
📊 पीरियड्स को लेकर अब भी समाज में संकोच
इस घटना ने एक बार फिर यह उजागर कर दिया है कि मासिक धर्म जैसे स्वाभाविक और जैविक प्रक्रिया को लेकर हमारे समाज और संस्थानों में अब भी समझ और संवेदनशीलता की भारी कमी है।
UNICEF की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल करीब 2.3 करोड़ लड़कियां पीरियड्स शुरू होते ही स्कूल छोड़ देती हैं, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि करीब 54% किशोरियाँ एनीमिया से पीड़ित होती हैं।
🏫 सरकार की एडवाइजरी भी बनी दिखावटी
पिछले साल शिक्षा मंत्रालय ने बोर्ड परीक्षाओं के दौरान छात्राओं के लिए विशेष एडवाइजरी जारी की थी, जिसमें स्कूलों को फ्री सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराने, रेस्टरूम की व्यवस्था करने और पीरियड्स के दौरान सहूलियत देने की बात कही गई थी।
लेकिन ठाणे की यह घटना यह बताने के लिए काफी है कि नीतियां कागज़ों पर ही सीमित हैं, और ज़मीनी स्तर पर स्कूलों में पीरियड्स को आज भी ‘छुपाने’ या ‘शर्म’ का विषय माना जाता है।
यह घटना न केवल एक स्कूल की असंवेदनशीलता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि बेटियों की गरिमा की रक्षा अभी भी एक लंबा संघर्ष है।
❗ सवाल जिनके जवाब ज़रूरी हैं:
- क्या मासिक धर्म की स्थिति में बच्चियों की निजता का उल्लंघन करने वाले स्कूल प्रशासन पर कड़ी सजा होगी?
- क्या शिक्षा विभाग की ओर से अब ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कोई ठोस कार्रवाई होगी?
- क्या समाज मासिक धर्म को लेकर अपनी सोच बदलेगा?
📢 ज़ोरदार हेडलाइंस इस मामले की हर अपडेट पर नज़र रखे हुए है। अपनी राय हमें कॉमेंट्स में जरूर बताएं — क्या अब समय आ गया है कि पीरियड्स को लेकर समाज और स्कूल दोनों को जागरूक और संवेदनशील बनाया जाए?



