राहुल गांधी का पीएम मोदी पर तीखा हमला: "खोखले भाषण बंद कीजिए, पाकिस्तान पर भरोसा क्यों किया?"

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नई दिल्ली।
लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनज़र देश में राजनीतिक बयानबाज़ी चरम पर है। बीकानेर की एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए जोशीले भाषण पर कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने तीखा पलटवार किया है। गुरुवार शाम राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट करते हुए प्रधानमंत्री से तीन सीधे सवाल पूछे और उनके हालिया बयानों को "खोखला" बताया।

राहुल गांधी ने लिखा,
"मोदी जी, खोखले भाषण देना बंद कीजिए। सिर्फ इतना बताइए कि आतंकवाद पर आपने पाकिस्तान की बात पर भरोसा क्यों किया?"

इसके साथ ही उन्होंने तीन बड़े सवाल उठाए:

  1. आतंकवाद पर आपने पाकिस्तान की बात पर भरोसा क्यों किया?
  2. ट्रंप के सामने झुककर आपने भारत के हितों की कुर्बानी क्यों दी?
  3. आपका ख़ून सिर्फ़ कैमरों के सामने ही क्यों गरम होता है? क्या आपने भारत के सम्मान से समझौता कर लिया है?

बीकानेर रैली में पीएम मोदी का जोरदार बयान

इससे पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के बीकानेर में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि “मोदी का दिमाग ठंडा है, लेकिन नसों में गर्म सिंदूर बहता है।”
उन्होंने हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले का ज़िक्र करते हुए दावा किया कि “22 अप्रैल को हुए हमले का बदला भारतीय सेना ने महज 22 मिनट में ले लिया। आतंकियों के 9 ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया गया।”

प्रधानमंत्री ने भावनात्मक अंदाज़ में कहा,
“गोलियां पहलगाम में चली थीं, लेकिन वह हर भारतीय के दिल को चीर गईं। हमारी बहनों की मांग का सिंदूर उजाड़ा गया था। मगर हमने संकल्प लिया था कि आतंकियों को मिट्टी में मिला देंगे, और हमने कर दिखाया।”

चुनावी मौसम में गरमा रहा सियासी पारा

प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान को जहां बीजेपी समर्थकों ने “निर्णायक नेतृत्व” का प्रतीक बताया है, वहीं कांग्रेस ने इसे “चुनावी नौटंकी” करार दिया है। राहुल गांधी के सवाल अब राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गए हैं। सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर तीखी बहस जारी है।

निष्कर्ष

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ रहे हैं, नेताओं के बीच जुबानी जंग और तेज़ होती जा रही है। राहुल गांधी का हमला और पीएम मोदी की आक्रामक शैली बताती है कि यह चुनाव न केवल मुद्दों पर, बल्कि भावनाओं और राष्ट्रवाद की परिभाषा को लेकर भी लड़ा जा रहा है।

अब देखना यह है कि जनता किसके शब्दों को सच मानती है—खून में बहता “गर्म सिंदूर” या सोशल मीडिया पर उठे सवालों का दबाव।


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