नई दिल्ली: केंद्र सरकार एक बार फिर वोटर आईडी को आधार से लिंक करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है। इस संबंध में मंगलवार को चुनाव आयोग और यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) के अधिकारियों की बैठक हुई। बैठक में इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर सहमति बनी और अब इस पर विशेषज्ञों की राय ली जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत होगी प्रक्रिया
चुनाव आयोग ने साफ किया है कि वोटर आईडी को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया मौजूदा कानूनों और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार ही की जाएगी। इससे पहले 2015 में भी ऐसी ही कवायद की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसे रोक दिया गया था।
आयोग के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत मतदान का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को दिया गया है, जबकि आधार केवल एक पहचान पत्र है। इसलिए इस प्रक्रिया में सभी कानूनी प्रावधानों और संवैधानिक मानकों का पालन किया जाएगा।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: राहुल गांधी ने उठाए सवाल
इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने X (पूर्व में ट्विटर) पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि मतदाता सूचियों में गड़बड़ियों के मुद्दे लगातार उठते रहे हैं, जिनमें डुप्लिकेट वोटर आईडी, नाम जोड़ने और हटाने जैसी समस्याएं शामिल हैं।
राहुल गांधी ने आशंका जताई कि अगर डुप्लिकेट वोटर आईडी को आधार से जोड़ा गया तो गरीब तबके को लिंकिंग प्रक्रिया में दिक्कतें आ सकती हैं। उन्होंने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने की अपील की कि किसी भी भारतीय नागरिक को वोटिंग के अधिकार से वंचित न किया जाए। साथ ही, उन्होंने लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट को सार्वजनिक करने और उसमें हो रहे बदलावों पर पारदर्शिता लाने की मांग की।
क्या कहता है मौजूदा कानून?
वर्तमान कानून के तहत वोटर आईडी और आधार को स्वैच्छिक रूप से लिंक करने की अनुमति दी गई है। संसद में सरकार ने बताया कि यह प्रक्रिया पहले से चल रही है, लेकिन इसे अनिवार्य बनाने की कोई समयसीमा तय नहीं की गई है। सरकार ने स्पष्ट किया कि जो नागरिक आधार से लिंक नहीं कर पाएंगे, उनके नाम मतदाता सूची से नहीं काटे जाएंगे।
चुनाव आयोग ने अप्रैल 2025 से पहले मांगे सुझाव
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) के सूत्रों के मुताबिक, आधार-वोटर लिंकिंग का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, समावेशी और प्रभावी बनाना है। आयोग ने 31 मार्च 2025 से पहले सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों (DEO), मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEO) और पंजीकरण अधिकारियों (ERO) के स्तर पर बैठकें आयोजित करने की योजना बनाई है।
इतना ही नहीं, चुनाव आयोग ने 10 वर्षों में पहली बार सभी राष्ट्रीय और राज्य-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से 30 अप्रैल 2025 तक इस विषय पर आधिकारिक सुझाव मांगे हैं।
2015 में क्यों रुकी थी प्रक्रिया?
यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने वोटर आईडी और आधार को लिंक करने की पहल की है। 2015 में चुनाव आयोग ने ‘राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण कार्यक्रम’ (NERPAP) के तहत इस प्रक्रिया की शुरुआत की थी। उस दौरान 30 करोड़ से अधिक मतदाता पहचान पत्रों को आधार से जोड़ा भी जा चुका था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह अभियान रोक दिया गया।
दरअसल, उस समय आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में करीब 55 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हट गए थे। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हुई और शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि आधार को किसी भी अनिवार्य सेवा से जोड़ा नहीं जा सकता, सिवाय सरकारी सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाओं के।
क्या होगा आगे?
अब जब चुनाव आयोग और UIDAI इस प्रक्रिया को फिर से आगे बढ़ाने पर सहमत हो चुके हैं, तो आने वाले समय में इस पर कानूनी और तकनीकी विशेषज्ञों की राय ली जाएगी। अगर सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मिलती है, तो आधार-वोटर लिंकिंग की प्रक्रिया को औपचारिक रूप से लागू किया जा सकता है।
हालांकि, इस कदम के पक्ष और विपक्ष में राजनीतिक और कानूनी बहस तेज होने की संभावना है। सरकार का कहना है कि इससे फर्जी मतदान पर रोक लगेगी, जबकि विपक्षी दलों को आशंका है कि इससे गरीब और वंचित तबकों के नाम मतदाता सूची से हट सकते हैं। ऐसे में इस मुद्दे पर अंतिम फैसला आने वाले महीनों में ही स्पष्ट हो पाएगा।