मानसिक रूप से बीमार युवक का रेस्क्यू: अंधविश्वास के खिलाफ संस्था का संघर्ष

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इंदौर
 खजराना थाने से महज कुछ कदमों की दूरी पर एक युवक को पिछले सात सालों से बेडियों में जकड़कर रखा गया था। युवक नग्न अवस्था में था और अंधविश्वास की वजह से उसकी मां व कुछ समर्थकों ने उसे इस स्थिति में छोड़ रखा था। समाजसेवी संस्था के हस्तक्षेप और पुलिस की सहायता से युवक को छुड़ाकर मानसिक चिकित्सालय में भर्ती कराया गया।

सात साल से जंजीरों में कैद

यह मामला तब सामने आया जब कुछ फल विक्रेताओं ने समाजसेवी संस्था ‘प्रवेश’ की रूपाली जैन से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि खजराना थाने के पास मुख्य सड़क पर एक विक्षिप्त युवक बेडियों में बंधा हुआ है। जांच के बाद पुष्टि हुई कि युवक का नाम जैद पिता उबैर उल्ला है। जैद के माता-पिता का 15 साल पहले तलाक हो गया था। 9 साल की उम्र में सिर पर चोट लगने के कारण जैद का मानसिक संतुलन बिगड़ गया। उसकी हरकतों को देखते हुए उसे बेडियों में जकड़ दिया गया।

रेस्क्यू ऑपरेशन पर हुआ हंगामा

जैसे ही संस्था की टीम जैद को छुड़ाने पहुंची, उसकी मां और अंधविश्वासी भीड़ ने विरोध करना शुरू कर दिया। माहौल को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई। यहां तक कि कुछ युवकों ने जैद को ‘फरिश्ता’ बताकर बचाने का प्रयास किया। जब जैद की बेडियां खोली गईं, तो वहां मौजूद लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया। पुलिस ने स्थिति संभालते हुए भीड़ को पीछे हटाया और रेस्क्यू टीम ने युवक को सुरक्षित निकाला।

मानसिक चिकित्सालय में भर्ती

पुलिस और संस्था के प्रयासों से जैद को बाणगंगा मानसिक चिकित्सालय ले जाया गया, जहां उसका इलाज शुरू हो चुका है।

बहन ने खोली मां की पोल

संस्था ने जैद की बहन सारा से संपर्क किया। उसने बताया कि उनकी मां इलाज करवाने से डरती है और झाड़-फूंक पर विश्वास करती है। मां भीख मांगकर परिवार का गुजारा करती है और जैद को अपने से दूर नहीं होने देना चाहती।

रेस्क्यू के दौरान हिंसा

रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान संस्था की टीम पर कई बार हमले हुए। जैद की मां ने टीम की ज्योति गुर्जर और मालती दुबे पर हमला कर उन्हें नाखूनों से घायल कर दिया। संस्था के शिवा पटेल, सुनील मेड़ा, अंकित गुर्जर और चेतन सेंगर ने लगभग दो घंटे की मशक्कत के बाद जैद को छुड़ाया।

अंधविश्वास से मुक्ति की जरूरत

यह घटना अंधविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी को उजागर करती है। जैद का मामला केवल एक उदाहरण है कि कैसे अज्ञानता और कुप्रथाओं के कारण मानसिक रूप से बीमार लोग असहनीय यातनाएं झेलते हैं। समाजसेवी संस्थाओं और पुलिस के प्रयासों से इस युवक को नई जिंदगी की उम्मीद मिली है।

 

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