अभाव के पलों से मुकाम तक पुल कैसे बनाया जाता है, मनोज तिवारी इसका बेहतरीन उदाहरण हैं। कभी भूख मिटाने के लिए उनको भरपेट रोटी भी नसीब नहीं थी। स्कूल जाने के लिए कई-कई किलोमीटर पैदल चले। नाम बनाने की कोशिश में कभी दिल्ली-मुंबई के प्लेटफॉर्म पर रातें गुजारीं तो कभी जेब का वजन देख होटल से भूखे वापस लौटे। लेकिन मनोज ने दुष्यंत कुमार की लाइन ‘कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’ को सच कर दिखाया। इन्होंने अपनी मेहनत से अपने दिन ऐसे फेरे कि आज उनके पास गाड़ी, बंगला, नाम, शोहरत सब है। आज की सक्सेस स्टोरी में मनोज तिवारी बता रहे हैं, गायक से अभिनेता और फिर नेता बनने की कहानी… छोटी उम्र में सिर से पिता का साया उठा मैंने बहुत छोटी उम्र में पिताजी को खो दिया था। मेरे पिताजी शास्त्रीय संगीत के गायक थे, तो मैं उन्हें सुनाता था। पिताजी के रहते तो मुझे पता भी नहीं था कि मैं संगीत में जाऊंगा। मुझे इतना याद है कि पिताजी मुझे अपनी गोद में लेकर सोते थे। पीठ पर थपकी देते समय कुछ गाते थे। शायद वहीं से मेरे अंदर संगीत की रुचि बढ़ी। अब जब मैं अपने पिताजी को याद करता हूं तो वो मुझे संत समान लगते हैं। उनका स्वभाव संत जैसा था। उन्हें जिससे प्रेम मिलता था, उसी के हो लेते थे। उनका व्यवहार बहुत अच्छा था। लोग आज भी बहुत तारीफ करते हैं। कई लोग आज भी मुझे उनके नाम से ही जानते हैं। एक समय दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं थी हम छह भाई-बहन थे। हमारी परवरिश में मां ने अथक परिश्रम किया है। मुझे मेरी मां में भगवान दिखता है। मेरी मां गोबर के उपले बनाती थी। वो गाय-भैंस से दूध खुद निकालती थी। बस पकड़ने के लिए चार-चार किलोमीटर पैदल चलती थी। उस वक्त हमारे लिए ट्रैक्टर सबसे बड़ा साधन होता था। ट्रैक्टर ट्रॉली में 20-25 लोग के साथ बैठकर 40 किलोमीटर तक की यात्रा करते थे। मैं स्कूल जाने के लिए चार-चार किलोमीटर पैदल चलता था और उस वक्त मैं भागता था। जब मैं दौड़ता तो लोग कहते थे कि वो देख मनोज दौड़ा रहा है। इतनी गरीबी थी कि साइकिल तक खरीद नहीं पाया कभी। हां, लेकिन जब मेरे दिन बहुरे, तब सीधे चार चक्का खरीदा। घाट पर गाकर सिंगिंग करियर की शुरुआत की मैं भले बिहार से हूं, लेकिन मेरा बनारस से भी उतना ही लगाव रहा है। जन्म बनारस में हुआ, पढ़ाई भी वहीं हुई। पढ़ाई के दौरान ही मैंने बनारस के घाटों पर गाना शुरू किया था। वहां गाते-गाते फिर एक दिन मुझे गंगा आरती में गाने का मौका मिला। फिर मैंने मंदिरों में जगराता गाना शुरू किया। भक्ति गानों की वजह से मुझे लोग जानने लगे थे। एक बार शिवरात्रि के मौके पर मैं शीतला घाट और अर्दली बाजार के महावीर मंदिर में परफॉर्म कर रहा था, तभी मेरे सिर से खून बहने लगा। मैं पहले से ही घायल था, लेकिन परफॉर्मेंस के बीच मुझे न तो दर्द का पता चला और न खून का। इस एक घटना और मेरे भक्ति गानों की वजह से लोग मुझे जानने लगे थे। इसके बाद मुझे फिल्मों में गाने का ऑफर मिलने लगा। फिर मेरा एलबम ‘बगलवाली’ आया, जिसने मुझे फेमस कर दिया। उस वक्त सोशल मीडिया का जमाना नहीं था। लोग मुझे मेरी आवाज से पहचानते थे। काशी में पुलिस लाठीचार्ज में मरते-मरते बचा 1997 का साल था, जब मैं अस्सी घाट पर भयानक पुलिस लाठीचार्ज का शिकार हुआ। मैं उस वक्त काशी विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन कर रहा था। एक दिन हम 30-35 दोस्त अस्सी घाट पर पार्टी कर रहे थे। वहीं पास में पीएससी की टुकड़ी रहती थी। मैं गाने की फील्ड में नया-नया उभरा था। एक साल पहले ही मेरा गाना आया था। दोस्तों ने कहा कि हम लोग खाने की तैयारी कर रहे हैं, तुम गाना गाओ। जब मैं गा रहा था, तब कुछ लोग डिस्टर्ब करने लगे। मेरे दोस्तों में से किसी एक ने सामने वाले बंदे को धक्का दे दिया। मेरे दोस्त ने जिसे धक्का दिया, वो पुलिस का डिप्टी एसपी था। उसने फिर अपनी टुकड़ी को ये बोला कि इस घर में सारे आतंकवादी हैं। उसके बाद जो हम सब पर लाठियां बरसीं हैं, वो भयानक था। मुझे अपने ऊपर 200-250 लाठियां गिरने तक होश था, लेकिन उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं रहा। उस लाठीचार्ज में मेरा सिर फट गया, मेरा हाथ टूट गया था। मैं डेढ़ महीने तक अस्पताल में रहा। ‘ससुरा बड़ा पईसावाला’ से मिला भोजपुरी अमिताभ बच्चन का टैग मेरे जीवन में हर पंद्रह साल में एक बड़ा और अच्छा बदलाव आता है। मैं जगराता और भोजपुरी एल्बम के लिए काम कर रहा था। साल 2003 में मैंने भोजपुरी फिल्म 'ससुरा बड़ा पईसावाला' से अपना एक्टिंग डेब्यू किया। इस फिल्म से पहले तक मैं सिर्फ एक सिंगर था, लेकिन इसने मुझे स्टार बनाया और मेरी किस्मत बदल दी। मेरी फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल ही कर दिया। ‘ससुरा बड़ा पईसावाला’ को बनाने में मात्र 30 लाख रुपए लगे थे, लेकिन फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर लगभग 9 करोड़ रुपए की कमाई की। साल 2022 तक ये भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म रही। चार-पांच महीने तक फिल्म थिएटर में लगी रही और हर शो हाउसफुल होता था। 2003 से 2014 तक मैंने कई फिल्में कीं। एक समय मैं भोजपुरी का सबसे महंगा एक्टर था। साल 2006 में मैंने फिल्म ‘गंगा’ की, जिसमें सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भी दिखे। ये उनकी पहली भोजपुरी फिल्म थी। बेमन से राजनीति में आया और योगी जी के खिलाफ लड़ा साल 2009 में भोजपुरी सिनेमा में बुलंदी देखने के बाद मैं राजनीति की तरफ मुड़ा। फिल्म और गानों की वजह से राजनीति से जुड़े लोगों से मिलना-जुलना होता रहता था। उस वक्त मैं किसी का भी प्रचार कर देता था। बाद में समझ आया कि मेरी विचारधारा क्या है, लेकिन जब तक ये समझ आया, उससे पहले मैं समाजवादी पार्टी के टिकट पर योगी आदित्यनाथ जी के खिलाफ चुनाव लड़कर हार देख चुका था। उस वक्त राजनीति में बेमन से आया था। बाद में एहसास हुआ कि राजनीति के प्रति उदासीन होना, देश, समाज और लोगों के प्रति मुंह मोड़ना है। इससे भागने के बजाय मैंने सही चुनाव किया और नरेंद्र मोदी जी के साथ खड़ा हुआ। बीजेपी मेरे लिए घर जैसी थी क्योंकि मैं 1991 से अखिल भारतीय परिषद से जुड़ा था। राजनीति में मेरी शुरुआत भले ही बेमन से और असफल रही थी, लेकिन जब मैंने बीजेपी जॉइन की तो यहां भी किस्मत ने साथ दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में मैंने नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से आप के उम्मीदवार को लगभग डेढ़ लाख वोटों से हराया। फिर 2016 में दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष बना। पांच साल बाद मैंने इसी सीट से दिल्ली की सीएम और कद्दावर नेता शीला दीक्षित को साढ़े तीन लाख वोटों से हराया। ये जनता का प्यार और भगवती की कृपा थी। अपनों के लिए गाया 'जिया हो बिहार के लाला’, ‘हिंद का सितारा’ ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का गाना मेरे लिए वरदान था। मैं अनुराग कश्यप का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे मौका दिया। मैं रहने वाला बिहार का हूं और गाना मुझे जिया हो बिहार के लाला मिला। अपने लोगों, अपनी मिट्टी के लिए गाने का मौका मिला, इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा। पंचायत का हिंद का सितारा तो बड़े-बुजुर्ग क्या जेन Z के बीच भी पॉपुलर है। मीम कल्चर का भी हिस्सा बन गया है। ऑपरेशन सिंदूर पर गाना बनाया तो उसे भी बच्चा-बच्चा गा रहा है। मेरे गानों पर अश्लीलता का भी आरोप लगाया जाता है, लेकिन मैं जानता हूं कि मेरा कोई भी गाना ऐसा नहीं है, जिसे लेकर शर्मिंदगी हो। मेरे सारे गानों में एक थीम होती है। वर्तमान में दूसरे गायकों के कुछ गाने ऐसे आए हैं, जिन्हें सुनकर निराशा होती है, लेकिन मैं जल्द ही भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को बिठाकर इसका समाधान निकालूंगा। विरोधियों ने ट्रोल किया, फिर भी जीत की हैट्रिक लगाई मुझे हराने के लिए विरोधियों ने साम, दाम, दंड, भेद सब किया। मुझ पर पर्सनल अटैक किए गए। जिन गानों की वजह से मैंने अपना नाम बनाया था, उनके जरिए मुझ पर निशाना साधा गया। मुझे बुरी तरह ट्रोल किया गया, मेरे ऊपर मीम बनाया गया। मेरे विरोधियों ने सारे हथकंडे अपनाए, लेकिन जनता-जनार्दन सब जानती है। मैंने नॉर्थ ईस्ट दिल्ली लोकसभा सीट से तीसरी बार जीत हासिल की। मैंने राजनीति में अपने ऊपर होने वाली सभी बुरी बातों पर हंसना सीख लिया है। फिल्म और राजनीति दोनों में काफी समानता है। दोनों में लगातार बेहतर परफॉर्मेंस देनी होती है, अपनी ऑडियंस बनानी होती है और सबसे जरूरी बात कि विनम्र होना पड़ता है। मैंने जिंदगी से ये सीखा है। पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी यहां पढ़ें... जानलेवा बीमारी ने छीना विवेक अग्निहोत्री का बचपन:वामपंथ पर फिल्म बनाई तो लोगों ने मोदी सपोर्टर कहा, कंधा तोड़ा; ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर मिलीं धमकियां अंग्रेजी में एक कहावत है कि यू कैन हेट मी, यू कैन लव मी…बट यू कांट इग्नोर मी। फिल्म डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री पर ये कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। लंबे समय तक एड फिल्म्स और फिर बॉलीवुड में मसाला फिल्म बनाने वाले विवेक ने जब अपनी ही कहानी फिल्म के जरिए दिखाई तो उन्हें एक तबके का भारी समर्थन और दूसरे तबके से जबरदस्त विरोध मिला। ऐसा कि फिल्म स्क्रीनिंग में उनका कंधा तक तोड़ दिया गया। पूरी स्टोरी यहां पढ़िए...
from बॉलीवुड | दैनिक भास्कर https://ift.tt/TBm3C2R
रोटी को तरसे, घाटों पर गाने भी गए:पुलिस ने आतंकी समझकर पीटा, मनोज तिवारी ने संघर्ष से कमाया नाम और कहलाए भोजपुरी के अमिताभ बच्चन
June 20, 2025
0